Friday, July 8, 2011

नाज़ुक ख्यालों वाला एक पहलवान शायर


Qateel Shifai

ज़िन्दगी  में तो सभी प्यार किया करते हैं... मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे  चाहूंगा...    जैसी दिल की नाजुक रगों को छू लेने वाली नज्म लिखने वाले उर्दू के मशहूर व मआरूफ शायर कतील शिफाई की 11 जुलाई को दसवीं बरसी है. पाकिस्तान के हजारा जिले में 24 दिसंबर, 1919 को पैदा हुए कतील शिफाई का असली नाम औरंगजेब खान था. ’कतील‘ इसलिए कि जिसका कत्ल हो गया  हो, यानि  इश्क में फना हो गया  हो और ’शिफाई‘ इसलिए कि वे अपने उस्ताद शायर  शिफा कानपुरी से अपनी बाकमाल शायरी  और कलाम पर इसलाह लिया करते थे. इन दोनों मौजूं ने मिलकर औरंगजेब खान को कतील शिफाई जैसे शायर  की शक्ल दे दी, जिसने उर्दू शायरी को आला मकाम अता करने में अपनी जिंदगी तो लगा दी. मगर अपनी जिंदगी फिल्म एक्ट्रेस चंद्रकांता से बिछडने के बाद तो जैसे सदमें आ गये. लेकिन जुदाई के उस गम ने उनकी शायरी में बेइंतहा रूमानियत भर दी.
सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे  जुदा हूं मैं
लेकिन ये सोचता हूं कि तेरा क्या हूं मैं...
इस बात का वे खुद भी इकरार करते हुए कहते हैं कि, ’अगर चंद्रकांता मुझे छोड़कर नहीं गयी  होती तो मैं अभी तक एक ढर्रे वाली ही शायरी कर रहा होता, जिसमें हकीकत की बजाय् बनावट ज्यादा होती. चंद्रकांता से बिछडने के बाद की शायरी में कल्पनाओं के लिए कोई जगह नहीं है.‘ सचमुच दर्द में डूबी उनकी गजलों में जिंदगी का फलसफा साफ दिखायी देता है, जब वे फरियाद करते हुए कहते हैं...
दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह...
और इस फरियाद का असर यह हुआ कि कतील की मकबूलियत  दिन पर दिन बढती गयी. शायरी  के लिए उनकी दीवानगी का आलम यह था कि बीवी-बच्चों की परवरिश के लिए जी-तोड मेहनत करने वाले कतील कलम उठाना कभी नहीं भूलते. उनके इस अंदाज ने जमाने की रुसवाईयों को दरकिनार कर दिया...
चलो अच्छा हुआ काम आ गयी दीवानगी अपनी
वगरना हम जमाने भर को समझाने कहां जाते...
कतील शिफाई वैसे तो पाकिस्तान के थे, लेकिन उन्हें पाकिस्तान से ज्यादा हिंदुस्तान में मकबूलियत  हासिल हुई. उनकी मकबूलियत ने उन्हें फिल्मों में गीत लेखन का बेहतरीन मौका दिया. इस मौके को भुनाते हुए कतील ने एक से बढकर एक बेहतरीन गीत लिखे. बालीवुड में बडे दिलवाला, औजार, पेंटर बाबू, फिर तेरी कहानी याद आई, शीरी फरहाद, गुमान जैसी कामयाब फिल्मों के गीतकार रहे कतील शिफाई को भारत और पाकिस्तान के कई अकादमिक पुरस्कारों से भी नवाजा गया. जगजीत सिंह, चित्रा सिंह और गुलाम अली जैसे गजल गायकों  ने तो उनकी गजलों से अपनी आवाज को और शीरी बनाया है. 
अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं हूं तेरा नसीब अपना बना ले मुझको... 
अंग्रेजी के मशहूर कवि वर्ड्स्वर्थ ने कहा था कि, ’पोएट्री इज स्पोंटेनियस ओवरफ्लो आफ पावरफुल इमोशन‘, यानि  शायरी जेहनो-दिल में दफ्फतन उठे जज्बात का नाम है, जिसे काफिया-रदीफ के पैमाने में उतारकर लय और बहर के साथ किसी खूबसूरत गजल या नज्म की शक्ल दी जाती है. मगर कतील शिफाई इससे बिलकुल अलग मिजाज रखते थे. हर लेखक या शायर  के लिखने का ढंग अलग-अलग होता है. मसलन, अल्लामा इकबाल के बारे में बात कही जाती है कि वे फर्शी हुक्का भरकर पलंग पर लेट जाते थे और अपने मुंशी को शेर लिखवाना शुरू कर देते थे. जोश मलीहाबादी अलसुबह सैर को निकल जाते थे और कुदरत के नायाब मनाजिर को देखकर उनके वजूद को शायरी बना लेते थे. बाज शायरों के बारे में यह भी आता है कि वे शराब की घूंट लिये बगैर तो लिख ही नहीं सकते. गोया उनके जेहनो-दिल के गोशे में छुपे नाजुक खयालात कलम के रास्ते बाहर आने के लिए शराब की कीमत मांगते हों. लेकिन कतील शिफाई इन सब पैमानों से बिलकुल अलग सुबह चार बजे ही उठकर दंड-बैठक और तेल मालिश करते थे, फिर शेर लिखना शुरू करते थे. अब ताज्जुब की बात यह है कि जिस्म से हट्टे-कट्टे, पहलवान नजर आने वाले और सुबह-सवेरे दंड-बैठक करने वाले इस शख्स की शायरी में झरनों का सा संगीत, फूलों जैसी महक, महबूबा की कमर जैसी लोच और दर्द में डूबी एक बेवा की जवानी जैसी गमजदा सलाहियतें  कहां से आती थीं. खम ठोंकने और पैंतरे बदलने वाले कतील शिफाई के कमरे से आने वाली आवाज की जगह दर्द भरी मुहब्बत में डूबी हुई गजलों और नज्मों की गुनगुनाहट मचलती थी...
किया है प्यार जिसे हमने जिंदगी की तरह
वो आशना भी मिला हमसे अजनबी की तरह...
किसी की याद में रातभर जागने की बेचैनी और सुबह उठकर पहलवानी करने की आदत के दरमियान वे कैसे अपने दर्द भरे लम्हे को जीते थे, उसकी एक बानगी देखिए...
परेशां रात सारी है सितारे तुम तो सो जाओ
सुकूत-ए-मर्ग तारी है सितारे तुम तो सो जाओ...

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