Wednesday, February 16, 2011

पुरस्कृत कविता: लोकतंत्र में लोक


पुरस्कृत कविता: लोकतंत्र में लोक


प्रतियोगिता की दूसरी कविता वसीम अकरम की है। यूनिप्रतियोगिता के नियमित प्रतिभागी वसीम की कविताओं के केंद्र मे सामाजिक और आर्थिक विसंगतियाँ होती हैं, रूढियों और अन्याय के प्रतिरोध का स्वर हो्ता है और सामाजिक परिवर्तन का आह्वान भी होता है। नवंबर माह के यूनिकवि रह चुके वसीम अकरम की एक ग़ज़ल पिछले माह भी शीर्ष दस मे रही थी।

तुम्हे रोटी नहीं मिलेगी,
तुम ईंट पत्थर जोड़ोगे
तुम्हें सड़क पर सोना होगा,
तुम कपड़े बुनोगे
और तुम नंगे रहोगे,
क्योंकि अब लोकतंत्र
अपनी परिभाषा बदल चुका है
लोकतंत्र में अब लोक
एक कोरी अवधारणा मात्र है,
सत्ता तुम्हारे नहीं
पूंजी के हाथ में है
और पूंजी
नीराओं, राजाओं
कलमाडियों और टाटाओं के हाथ में है,
तुम्हारी ज़बान, तुम्हारी मेहनत
तुम्हारी स्वतंत्रता, तुम्हारा अधिकार
सिर्फ संवैधानिक कागजों में है
हकीकत में नहीं,
तभी तो
तुम्हारी चंद रुपये की चोरी
तुम्हें जेल पहुंचा देती है
मगर
उनकी अरबों की हेराफेरी
महज एक
राजनितिक खेल बनकर रह जाती है।

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