Wednesday, April 23, 2014

शौक बड़ी चीज़ है... सच्ची

Sanjiv Saraf
कभी ग़ालिब ने मीर के लिए कहा था, ‘रेख़्ता के तुम ही उस्ताद नहीं हो गालिब, कहते हैं अगले जमाने में कोई मीर भी था...’  तब यह मीर की शायरी के लिए कहा गया था, लेकिन आज संजीव सराफ को उनकी उर्दू शायरी से मुहब्बत के लिए कहा जा सकता है कि सचमुच वे ‘रेख़्ता’ के उस्ताद हैं, जिन्होंने उर्दू शायरी का सबसे बड़ा आनलाइन ख़ज़ाना ‘रेख़्ता’ की नींव रखी...प्रभात ख़बर के लिए जब मैंने संजीव सराफ जी से बात की, तो उन्होंने अपने उर्दू शायरी के शौक और जुनून को कुछ इस तरह बयान फरमाया...

मेरी मुहब्बत का नज़राना है रेख़्ता : संजीव सराफ

         मौजूदा दौर इंटरनेट का दौर है. किसी भी हाल में हम इससे अछूते नहीं रह सकते. इसकी मकबूलियत की तस्दीक इस बात से होती है कि आज पूरी दुनिया इंटरनेट पर मौजूद है और हर काम के लिए लोग इंटरनेट का ही सहारा लेते हैं. इत्तेफाकन एक दिन मैं भी अपनी पसंदीदा गज़लें ढूंढ रहा था, लेकिन वे उस सलीके में मौजूद नहीं थीं, जैसा कि उन्हें होना चाहिए. मुझे इस दुश्वारी ने एक मशवरा दिया कि मैं एक ऐसी वेबसाइट शुरू करूं, जो पूरी तरह से देवनागरी लिपि में उर्दू शायरी की प्रमाणिकता का प्रतिमान बन जाये. मेरी इसी कोशिश ने रेख़्ता को जन्म दिया. उर्दू जबान से मेरी मोहब्बत का यह सबसे बड़ा सबूत है कि रेख्ता वेबसाइट तीन सौ साल से लेकर आज तक की शायरी का एक अनमोल ख़ज़ाना बन गयी है. आज अगर किसी फनकार की कोई किताब छपती है, तो वह कुछ लाइब्रेरियों तक ही सीमित होकर रह जाती है. लेकिन अगर कोई गजल रेख्ता पर पहुंचती है, तो वह पूरी दुनिया में मकबूलियत पाती है. यह नये फनकारों के लिए तो है ही, साथ ही मुल्क से बाहर बैठे हमारे अपनों के लिए भी है, जो शायरी से मुहब्बत करते हैं. मेरा मानना है कि किसी भी चीज़ को पाने के लिए जब तक आपके दिल में शिद्दत भरी मुहब्बत पैदा नहीं होगी, तब तक उसे आप हासिल नहीं कर सकते. मेरी मुहब्बत का नजराना आपके सामने है, अगर आपकी मुहब्बत का नज़राना भी हमें मिले, तो इससे बेहतर कोई और बात नहीं होगी.


कैसे हुई रेख़्ता वेबसाइट की शुरुआत
एक बड़े शायर का एक बेहतरीन शे’र है- 
                          उर्दू हमारे मुल्क की वाहिद ज़बान है। 
                       गंगा की जिसमें रूह तो जमुना की जान है।। 
आखिर जिस ज़बान में गंगा और जमुना जैसी पाकीज़ा नदियों की तासीर मिल रही हो और जिसके अशआरों, गजलों, नज्मों को पढ़-सुन कर गंगा-जमुनी तहज़ीब की महफिल में खुद के इज़हार-ओ-ख्यालात का मौका मिलता हो, तो भला कौन है जो इससे महरूम रहना चाहेगा. लेकिन वहीं अगर शायरी का इंतेहाई शौक रखनेवाले किसी शख्स को कोई शे’र, कोई ग़ज़ल या कोई नज़्म ढूंढने में मुश्किल हो रही हो, तो वह इस हद तक तो जायेगा ही कि उसका शौक मुकम्मल हो जाये. अपने इसी शौक को पूरा करने के लिए संजीव सराफ ने  www.rekhta.org  वेबसाइट की नींव रखी, ताकि उनके जैसा शायरी का इंतेहाई शौक रखनेवाला दुनिया का कोई भी शख्स एक अदद शे’र से महरूम न रह सके. मौजूदा वक्त में यह वेबसाइट पूरी दुनिया में सर्च की जा रही है और दुनिया भर में फैले उर्दूदां लोग इससे अपने शे’र पढ़ने के शौक को पूरा कर रहे हैं. 
         ‘रेख़्ता : बाब-ए-सुखन’ पर उर्दू के एक हजार मकबूल शायरों (ग़ालिब से लेकर अब तक) की तकरीबन दस हजार गजलें मौजूद हैं. महज दो लोगों से शुरू हुई इस वेबसाइट की खूबसूरती को बढ़ाते रहने के लिए आज 35 से ज्यादा लोग इसके नोएडा दफ्तर में काम कर रहे हैं. संजीव सराफ बताते हैं कि इस वेबसाइट से उन्हें कोई आमदनी नहीं हो रही है, फिर भी वे इसके लिए खर्च करने से जरा भी नहीं हिचकते. कारोबारी संजीव सराफ पॉलीप्लेक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड नाम की कंपनी के मालिक हैं, जो पीइटी फिल्में बनानेवाली दुनिया की बड़ी कंपनियों में शुमार की जाती है. यह एक गैर-उर्दू तरबियत से वास्ता रखनेवाले सराफ की उर्दू शायरी से बेपनाह मुहब्बत ही है, जिसने उन्हें ऐसी वेबसाइट खड़ी करने के लिए मजबूर कर दिया. 

रेख़्ता की खासियत
जनवरी, 2013 में शुरू हुई इस वेबसाइट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह उर्दू शायरी का सबसे बड़ा आनलाइन खजाना है. संजीव का मकसद रेख्ता के जरिये लोगों तक सिर्फ उर्दू शायरी पहुंचाना ही नहीं है, बल्कि देवनागरी, उर्दू और अंगरेजी, तीनों ज़बानों में उर्दू शायरी को मकबूलियत बख्शना है, जिससे गैर-उर्दूदां लोग भी बड़ी आसानी से उर्दू ज़बान की शहद जैसी तासीर को समझ सकें. 
          कहते हैं कि उर्दू मुहब्बत की जबान है. यकीनन इस बात का सबसे ज्यादा ख्याल रखा है संजीव ने. यही नहीं, इस पर मौजूद अशआरों, ग़ज़लों, नज़्मों की पुख़्तगी का खासा ख्याल रखा गया है, जो संजीव की उर्दू से रूहानी लगाव की तस्दीक करता है. कहते हैं कि नुक्ते के हेर-फेर से खुदा जुदा हो जाता है. नुक्ता यानी बिंदी, लेकिन संजीव ने नुक्ते का हेर-फेर नहीं होने दिया है, ताकि खुदा जुदा न हो सके. काबिल-ए-गौर है कि पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा उर्दू होते हुए भी वहां उर्दू शायरी को लेकर इतनी बड़ी वेबसाइट मौजूद नहीं है. 


वेबसाइट की पहुंच
किसी भी तहजीब में उसकी ज़बान का हम किरदार होता है. ठीक वैसे ही हिंदुस्तानी तहजीब में उर्दू जबान का है. मौजूदा वक्त में रेख्ता पर शायरी का लुत्फ उठानेवालों में दुनिया के डेढ़ सौ से ज्यादा मुल्कों के लोग शामिल हैं, यह सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है. इस वेबसाइट की शुरुआत से लेकर अब तक दुनिया के तकरीबन तीन लाख लोग इसे देख चुके हैं. रेख्ता की इस पहुंच को बरकरार रखने के लिए इसमें नयी तकनीकों का सहारा लिया जा रहा है. नयी तकनीक के तहत डेस्कटॉप-लैपटॉप से लेकर मोबाइल-टैबलेट तक इसकी मौजूदगी दर्ज कराने की जी-तोड़ कोशिश जारी है. 

सोशल मीडिया पर रेख्ता
मौजूदा वक्त में जिस तरह से सोशल मीडिया अपने शबाब पर है, ठीक उसी तरह इस पर गलत-सही चीजों की बाढ़ भी है. देखने में आता है कि अक्सर लोग सोशल साइटों पर कोई शे’र पोस्ट करते हुए यह ख्याल नहीं रखते हैं कि किस हर्फ पर नुक्ता होना चाहिए. लोगों की इस गलती को भी रेख्ता ने सुधारा है और कई लोग तो अपने दोस्त के गलत शे’र पोस्ट करने पर कमेंट में रेख्ता का वेब पता लिख कर मशवरा तक देते हैं कि पहले शे’र को सही-सही लिखना सीख लो. 

रेख़्ता की इ-लाइब्रेरी
इस सेक्शन में उर्दू की ऐसी पुरानी किताबों को जगह मिली है, जिनकी दुनिया में सिर्फ कुछ प्रतियां ही मौजूद हैं. आनलाइन आर्काइव में जाकर पुरानी जर्जर हो चुकी किताबों की स्कैन प्रति को देख कर जेहन खुद-ब-खुद उर्दू के गोल्डेन पीरियड में चला जाता है. मौजूदा वक्त में रेख़्ता की इ-लाइब्रेरी में उर्दू शायरी की एक हजार से ज्यादा पुरानी किताबें दर्ज हैं. 

नये फनकारों के लिए प्लेटफॉर्म
रेख़्ता के आफिस में एक स्टूडियो भी है, जहां नये फनकारों की गजलों को उनकी आवाज़ में रिकॉर्ड कर अपलोड किया जाता है. इसके अलावा बहुत से पुराने शायरों का कलाम पढ़ते हुए आडियो-वीडियो भी मौजूद है, जिसे सही-सही तलफ्फुज यानी उच्चारण के साथ देख-सुन कर सुहाने दौर की सच्ची शायरी का एहसास होने लगता है. नौजवान शायरों-फनकारों के लिए यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म मुहैया करता है, जिसके जरिये वे दुनिया भर में अपनी शायराना पहचान बना सकते हैं. जाहिर है, इतनी सारी खूबियों वाली इस वेबसाइट की पहुंच और पहचान तो बढ़नी ही है. अगर आपको भी शायरी का शौक है, तो पर अपनी शिरकत फरमाइए...

Office of Rekhta in Noida