Friday, May 17, 2019

तत्तापानी में पहाड़ों की मेजबानी का लुत्फ

पहाड़ों का सौंदर्य, बर्फ से ढकी उसकी वादी, दरख्तों व घरों पर ठहरे सफेद बर्फ के फाहों को देखकर और उसके खामोश संगीत को सुनकर मन करता है हम यहीं बस जायें. अगर आपको भी पहाड़ों से प्यार हो और उसकी खूबसूरती अपनी ओर खींचती हो, तो हिमाचल घूमने जा सकते हैं. हम ले चलते हैं आपको तत्तापानी के एक छोटे से सफर पर, जहां कुदरत की एक नायाब मिसाल मौजूद है.  

कुदरत ने इस जमीन पर ऐसी-ऐसी नायाब चीजें पैदा की हैं, जिन्हें देखकर दिल और दिमाग सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि क्या सचमुच हम जमीन पर ही हैं. स्वर्ग की संज्ञा से नवाजा जानेवाला कश्मीर इसकी बेहतरीन मिसाल है. फूल-पौधे और बेशुमार जीवों के साथ पहाड़, नदियां, झील-झरने और जंगल की खूबसूरती हमारे अंतरमन तक को मोह लेती है. इस बार के पर्यटन में हम बात करेंगे पहाड़ों की, जिनकी ऊंचाई देखकर एक तरफ धैर्य पैदा होता है, तो दूसरी तरफ इतना ऊंचा उठने का, ताकि लोग हम पर गर्व कर सकें. पहाड़ों का प्रदेश हिमाचल प्रदेश में शिमला, कुल्लू-मनाली, मंडी, कुफरी, किन्नौर, धर्मशाला, कसौली, वीर जैसी जगहों पर कुदरत ने अपनी खासियतें छोड़ रखी है. सर्दी के दिनों में पहाड़ों पर जब आसमान से बर्फ के फुहारे पड़ते हैं, तो लगता है कुदरत हमारा स्वागत कर रही है. 

तत्तापानी में गर्म जलस्रोत 
पिछले दिनों मकर संक्रांति के मौके पर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला घूमने का मौका मिला था.
Hot Spring Resort- Tattapani
राजधानी शिमला से तकरीबन पचास किलोमीटर दूर मंडी जिले में पहाड़ों की कोख में सतलज नदी के किनारे बसी एक छोटी सी जगह है- तत्तापानी. यहां गर्म जलस्रोत और जलकुंड पाये जाते हैं, इसलिए इसे तत्तापानी कहा जाता है. पंजाबी भाषा में तत्ता का अर्थ गर्म होता है. पहाड़ों के सबसे निचले सिरे में जहां पानी बहुत ठंडा होता है, वहां कहीं-कहीं जमीन से अपने आप गर्म पानी निकलता रहता है. इन जलस्रोतों के पाये जाने से तत्तापानी न सिर्फ अपने धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह जगह वहां होनेवाले कई अद्भुत खेलों के लिए भी मशहूर है. इन जलस्रोतों से हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गंध आती है. इन जलकुंडों के अपने होने का बहुत महत्व है कि हम कुदरत की गोद में ठंड के आलम में भी गर्म पानी से नहा सकते हैं. 

धर्म और खेल स्थल 
कुदरत जहां कहीं भी हमें चमत्कृत करती है, धर्म वहां फौरन अपना डेरा-डंडा डाल देता है. इसीलिए तत्तापानी के कुदरती जलस्रोतों को भी धार्मिक नजरिये से देखा जाता है. तकरीबन एक किलोमीटर में फैले तत्तापानी में हर साल पूर्णिमा को शानदार मेला लगता है और यहां के जलस्रोतों में नहाकर लोग कई बीमारियों से मुक्ति होने की कामना रखते हैं. राफ्टिंग जैसे खेलों का यहां सालाना आयोजन होता है. मकर संक्रांति के दिन हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर तत्तापानी में त्योहार मनाने आये थे और 'हॉट स्प्रिंग रिजॉर्ट' में ठहरे थे, जहां मैं ठहरा था. मुख्यमंत्री ने तत्तापानी के मशहूर नरसिंह मंदिर और शनि देव मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना की और यहां लगे मेले का लुत्फ उठाया. जनता को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि तत्तापानी को पानी के खेलों के लिए एक बड़ा डेस्टिनेशन प्लेस बनाया जायेगा. 

हॉट स्प्रिंग रिजॉर्ट 
शिमला आइएसबीटी से बस या फिर कार से डेढ़-दो घंटे का सफर पूरा करके पहाड़ों की तलहटी में सर्पमार्ग बना रही सतलज के किनारे तत्तापानी पहुंचना होता है. वैसे तो वहां ठहरने के लिए कई छोटे-बड़े होटल हैं, लेकिन हॉट स्प्रिंग रिजॉर्ट में ठहरने का अपना एक राजसी आनंद है. यह रिजॉर्ट सिर्फ ठहरकर पहाड़ी रात का लुत्फ उठाने के लिए ही नहीं है, बल्कि यहां बोटिंग, फिशिंग, कैंपिंग और ट्रेकिंग-राफ्टिंग की भी पूरी व्यवस्था है. इस रिजॉर्ट की व्यवस्था में सबसे खास बात यह है कि यहां हॉट स्प्रिंग हेल्थ केयर सेंटर में आयुर्वेद, नेचुरोपैथी और योग के जरिये पंचकर्म उपचार की भी व्यवस्था है, जो एक से बढ़कर एक असाध्य रोगों को दूर करने में कारगर है. रिजॉर्ट में लोग ठहरकर सांध्य योग करते हैं और मिनरल से भरपूर हॉट स्प्रिंग बाथ में बने कुदरती जलकुंड में नहाते हैं. कहते हैं कि इस जलकुंड के सल्फर वाटर में नहाने से त्वचा संबंधी कई असाध्य रोग दूर हो जाते हैं. अभ्यंगम मसाज, सर्वांग स्वेदन स्टीम बाथ, शिरोधारा, नेत्र तर्पन, नस्यम, सुखनिद्रा, रिजुवेनेशन थेरेपी, बॉडी इम्युनाइजेशन, स्लिमिंग, ब्यूटी केयर, स्पाइन एंड नेक केयर, मनोशांति, नेवल सीटिंग और स्पा आदि से कुदरत की गोद में बिठाकर आयुर्वेदिक इलाज किया जाना अद्भुत एहसास लगता है. 

बेहतरीन मेजबानी
पहाड़ों के बीच बने हॉट स्प्रिंग रिजॉर्ट की मेजबानी बहुत शानदार है. वहां कोई इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता कि पाताल से जरा सा ऊपर पहाड़ों की तलहटी में सतलज नदी के किनारे कोई फाइव स्टार होटल जैसी व्यवस्था दे सकता है. सैर-सपाटे के ऐतबार से यह रिजॉर्ट अपने आप में एक डेस्टिनेशन है. इस रिजॉर्ट के प्रेमलाल रैना और उनके सहयोगी युवराज त्यागी से बात करने का भी एक अलग एहसास है. कहीं भी घूमने जाने के साथ वहां के जायके का भी अपना एक महत्व होता ही है. इस ऐतबार से हॉट स्प्रिंग रिजॉर्ट के ऑर्गेनिक रेस्टोरेंट के हिमाचली खाने का स्वाद तो शायद ही हम भूल पायें. सर्दियां चल रही हैं, पहाड़ों की मेजबानी का लुत्फ लेना हो, तो तत्तापानी आप जरूर जायें.

Monday, May 13, 2019

कितना ज़रूरी है समाज में एक फ्रॉड का होना

हिंदी साहित्य के शलाका पुरुष राजेंद्र यादव ने एक दफा कहा था कि आनेवाला वक्त कहनियों का वक्त होगा. यह बात एक हद तक सच है. लेकिन यह बात भी सच है कि पिछले सत्तर सालों से मंटो की कहानियों की मांग और पढ़ने की ललक लगातार बनी ही रही है. उस दौर के कृश्न चंदर, राजिंदर सिंह बेदी, अहमद नदीम क़ासमी, इस्मत चुग़ताई और ख्वाजा अहमद अब्बास जैसे बेहतरीन लेखकों के होने के बावजूद सआदत हसन मंटो अकेला नज़र आते हैं, जिनकी कहानियां उर्दू ही नहीं, हिंदी के साथ ही कई भारतीय भाषाओं में छपती रही हैं. मकबूलियत के ऐतबार से देखें तो मंटो आज रूसी कथाकार और नाटककार चेखव, अमेरिकी लेखक ओ हेनरी और महान फ्रांसीसी कथाकार मोपासां जैसे विश्वविख्यात कहानीकारों की कतार में खड़े नज़र आते हैं और पूरे दक्षिण एशिया में फैज़ अहमद फैज़ के साथ ही मंटो भी सबसे ज्यादा पढ़े जाते हैं. मंटो की मकबूलियत यूं नहीं थी, उनकी कहानियां सीने में किसी नश्तर की तरह उतर जाती थीं और आज भी ऐसे ही उतर जाती हैं. मंटो कहते थे कि उन्होंने कहानियां नहीं लिखीं, बल्कि कहानियों ने उन्हें लिखा है.
Manto and his wife Safia
       मंटो का दौर कहानियां लिखने के लिहाज से एक अच्छा दौर था. सामाजिक विभीषिकाएं जब मानसिक संवेदनाओं को झिंझोड़ देती हैं, हर तरफ इंसानियत जब कत्लो-गारत हो रही होती है, तब उससे महसूस हुए दर्द को कागज पर उकेरना पड़ता है. जब देश में बंटवारे का माहौल बन रहा था, तब मंटो की आंखें बंटवारे के बाद होनेवाली विभीषिका को देख रही थीं. यही था मंटो का होना और यह मंटोइयत ही मंटो को अपने दौर से कहीं बहुत साल आगे की विभीषिका को देख पाने वाला कहानीकार बनाती है. मंटो ने भांप लिया था कि बंटवारा सिर्फ देशों का ही नहीं होगा, बल्कि इंसानी एहसास-ओ-जज्बात का भी बंटवारा होगा, जिस पर दंगे-फसादात, खून-खराबे और औरतों पर जुल्म जैसी जघन्यता को अंजाम दिया जाएगा. अपने ज़माने से सौ साल आगे चलने वाला लेखक थे मंटो और उनकी कहानियां इस बात की पूरी तरह तस्दीक भी करती हैं. 
       मंटो नहीं चाहते थे कि दंगों के बाद कोई यह कहे कि हज़ारों हिंदू मारे गए या हज़ारों मुसलमान मारे गए. हज़ारों इंसानों का मारा जाना, वह भी हज़ारों लोगों का बेवजह मारा जाना मंटो के लिए एक बड़ी त्रासदी है. इस सोच के ऐतबार से देखें, तो मंटो अपने वक्त से कहीं बहुत आधुनिक थे. बतौर कहानीकार मंटो ने सच और कल्पना के बीच की खाई को अपनी रचनात्मक विलक्षणता से भर दिया है और वहां इंसान की पाश्विकता की हदें रख दी हैं, जिसे देख-पढ़कर हम मानवीय मूल्यों का पैमाना तैयार कर सकते हैं. ज़ाहिर है, एक उम्दा रचनाकार बिंबों की तलाश नहीं करता, बल्कि जड़ों की तलाश करता है. मंटो की कहानियों की जड़ में वह नंगा समाज था, जिसके कपड़े उतारने की मंटो ने कभी कोई ज़हमत ही नहीं की.  
       मंटो की कहानियों में सबसे ज्यादा बंटवारे की कहानियां हैं. उस वक्त देश के बंटवारे की बात थी और आज देश के भीतर लोगों के दिलों में खाई पैदा की जा रही है. मौजूदा माहौल बंटवारे की फिज़ा से कहीं ज्यादा खतरनाक है और इसीलिए आज मंटो की प्रासंगिकता ज्यादा है. उनकी कहानियां समाज की सड़ी-गली और बेहद गंदी व्यवस्था में मौजूद जिल्लतों की कहानियां हैं, जिनमें इंसानियत को तलाशने की जद्दोजहद है. आज जिस तरह से देश में फासीज्म ने अपना रुख अख्तियार किया है, धार्मिक उन्माद ने अपना फन फैलाया है, सांप्रदायिक रंजिशें राज करने की नीति बन गयी हैं, बलात्कार के वीडियो वाइरल हो रहे हैं, ऐसे में मंटो का पुनर्पाठ ज़रूरी हो जाता है. आज समकालीन साहित्यकारों, लेखकों और कहानीकारों में न तो लेखन की ऐसी क्षमता है और न हिम्मत ही है. और जिन कुछ लेखकों की जुबान से विरोध के स्वर उठ भी रहे हैं, सत्ता उन्हें किसी न किसी तरह कुचल दे रही है. 
       11 मई, 1912 को पंजाब के समराला में जन्मे सआदत हसन मंटो का उर्दू कहानियों में आज भी कोई सानी नहीं है. वह एक जीवट रचनाकार थे. मंटो के बगैर उर्दू कहानी पर कोई बात करना बेमानी है. यह बात अलग है कि मंटो ने दो बार फेल होकर इंटरमीडिएट का इम्तहान थर्ड डिवीजन से पास किया था और मजे की बात यह कि उसमें भी उर्दू के पेपर में नाकाम रहे थे. मंटो ने पहली कहानी 'तमाशा' नाम से लिखी थी, लेकिन वह किसी और नाम से छपी थी. ज़ाहिर है, उन्हें इस बात का अंदाज़ा था कि उस पर विवाद होगा. खुद को फ्रॉड कहने वाले मंटो शब्दों के पीछे ऐसे भागते थे, जैसे कोई तितली पकड़ने भागता हो. नाकाबिले-बरदाश्त ज़माने से वह इतना नाराज़ थे कि वह बात-बात पर नाराज़ हो जाते थे. उनकी नाराज़गी कागज पर उतरती थी, तो समाज नंगा हो जाता था. उनकी कहानियों को पढ़कर यही लगता है कि धर्म-जाति के उन्माद में लिपटे हमारे जैसे संकीर्ण समाज में मंटो जैसे फ्रॉड का होना आज कितना मायने रखता है.
        मंटो हमेशा अपनी कहानियों में या तो एक किरदार बनकर नज़र आते हैं, या फिर दूर से खड़ा कोई गवाह बनकर. वह चाहे 'टोबाटेक सिंह' हो या फिर 'मोज़ेल' या कोई अन्य कहानी. 'ठंडा गोश्त', 'काली सलवार', 'बू', 'ब्लाउज', 'खोल दो' और 'धुआं' जैसी कहानियों ने तो समाज को झिंझोड़कर रख दिया और मंटो पर अश्लील होने के इल्ज़ाम बढ़ने लगे. समय-समय पर इन कहानियों पर पाबंदियों की मांग भी उठी और उन्हें अदालत तक में घसीटा गया. मंटो छह बार अदालत गए, तीन बार आज़ादी से पहले और तीन बार पाकिस्तान बनने के बाद, लेकिन कोई भी मामला साबित नहीं हो सका. 'ठंडा गोश्त', 'काली सलवार' और 'बू', ये मंटो की तीन ऐसी कहानियां हैं, जिन पर पाबंदियां भी लगीं. इन पाबंदियों से उनकी कहानियां और भी दूर-दूर तक पहुंची. मंटो पर लगे आरोपों और पाबंदियों पर मंटो की रिश्तेदार और इतिहासकार आयशा जलाल कहती हैं-  मंटो के लिखे हुए अल्फाज़ इतिहास में दर्ज होने की कुव्वत रखते हैं.  
        मंटो पर बेशुमार इल्ज़ाम हैं. अश्लील कहानियां लिखने से लेकर बंटवारे का विरोध करते हुए भी भारत से पाकिस्तान चले जाने तक. मंटो उर्दू अदब के अकेले अफसानानिगार होंगे, जिनकी शोहरत को लेकर उनकी बदनामी को वजह बताया गया. यह सही बात नहीं है. उनकी कहानियों में सच्चाई इतनी कड़वी होती है कि इंसानी किरदार नंगे नज़र आते हैं. ज़ाहिर है, एक नंगा समाज ही मंटो पर अश्लील लिखने का आरोप लगा सकता है. आज के समाज में अगर मंटो होते तो गौरी लंकेश या कुलबुर्गी की तरह मार दिए जाते. तो क्‍या हमारा वर्तमान एक त्रासद से भरे समय के बोझ तले दबा हुआ नहीं है? 
      जहां तक उनके पाकिस्तान चले जाने की बात है, तो यह आरोप लगाने से पहले उस वक्त के हालात को देखना चाहिए. बंटवारे के बाद सांप्रदायिकता की आग चारों तरफ फैली हुई थी, जिसका शिकार खुद मंटो जैसे लेखक को भी होना था, हुआ भी. मंटो के परिवार की आर्थिक तंगी बढ़ती जा रही थी. लोग एक-दूसरे की मदद करना तक पसंद नहीं कर रहे थे. तो एक दिन उनकी बीवी ने कहा- 'जो लोग आपके हाथ से एक गिलास पानी नहीं पी सकते, वे आपको रोटी कैसे दे सकते हैं? आपको आपका बुनियादी हक कैसे दे सकते हैं?' यह सांप्रदायिकता का दंश ही था, जिसका मंटो पर असर हुआ और वे दुखी मन से हिंदुस्तान को अपने दिल में लेकर पाकिस्तान चले गए और लाहौर में बस गए. उनके पाकिस्तान जाने के बाद एक पाकिस्तानी नक्काद (आलोचक) हसन असगरी ने पूरी कोशिश की कि मंटो जैसे अवामी लेखक को पाकिस्तानी बना दिया जाए. इसी का नतीजा था कि लोग मंटो पर पाकिस्तानी होने के आरोप लगाने लगे.  
        18 जनवरी, 1955 को उर्दू का महान कहानीकार सआदत हसन इस दुनिया को अलविदा कह गए, लेकिन हमेशा के लिए मंटो को छोड़ गए, जिसे न तब किसी से डर था, न अब किसी से डर है. महज 42 साल की छोटी सी जिंदगी में मंटो ने 300 से ज्यादा कहानियां लिखीं. इसके अलावा भी मंटो ने रेडियो और फिल्मों के लिए लिखा और अनगिनत लेख भी लिखे. लेकिन, यह सोचकर बेहद हैरत होती है कि इतना लिख्खाड़ आदमी कभी कोई नॉवेल नहीं लिखा. खैर, अपनी कहानियों में मंटो आज भी ज़िंदा है और अब फिर कोई मंटो नहीं पैदा होगा.