रोज अखबारों में कहीं न कहीं खबर छपता है कि आज फलां जगह पर पानी के लिए लड़ाई हुई। पिछले 17 अप्रैल को मुंबई के कुलावा में पानी को लेकर हुई मार पीट में एक व्यक्ति की जान चली गई। राजस्थान में तो औरतें पानी के लिए तीन से चार किलोमीटर तक पैदल चलकर गड्ढों, तालाबों, बावडि़यों तक पहुंचती हैं। इसके बावजूद भी उन्हें गंदा पानी ही नसीब होता है। देश की राजधानी दिल्ली में भी आए दिन पानी को लेकर हंगामा होता ही रहता है। रोज ब रोज पानी की बढ़ती हुई कमी को देखते हुए दैनिक भास्कर का ‘जल है तो कल है’ वैचारिक अभियान बहुत सराहनीय है। एक सर्वे के मुताबिक आधुनिक सुख सुविधाओं से संपन्न शहर के मकानो में रहने वाले लोग कमोड को फ्लश करने में जितना पानी एक बार में खर्च कर देते हैं, उतना एक आदमी के लिए दिन भर के पीने के लिए काफी होता है। आंकड़ों की मानें तो भारत में लगभग 40 करोड़ घरों में इस आधुनिक सुविधा की व्यवस्था है। और एक आदमी दिन भर में कम से कम चार से पांच बार छोटी बड़ी शंका समाधान के लिए बाथरूम जाता है, और हर बार जरूरत से ज्यादा पानी डालता है। इस तरह देखा जाए तो एक व्यक्ति लगभग चार से पांच लोगों के पीने के बराबर यानी 25 से 30 लीटर पानी दिन भर में सिर्फ बाथरूम में बहा देता है, और रोज लगभग 750 करोड़ लीटर से 900 करोड़ लीटर पानी बाथरूम के हवाले हो जाता है।
अगर इस्तेमाल करने की बात होती तो ठीक था लेकिन यह तो पूरी तरह से गैरजरूरतन पानी की बरबादी है। आए दिन लोग अपनी गाडि़यो को नहलाते मिल ही जाते हैं। अगर वो चाहते तो एक बाल्टी पानी में कपड़ा भिगोकर अच्छी तरह सफाई कर सकते हैं, मगर ऐसा करना वो अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। जितनी तेजी से शहरीकरण बढ़ रहा है उतनी ही तेजी से पानी की कमी भी बढ़ रही है। आज भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा शुद्ध पानी से वंचित है।
इस पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत भाग पानी से भरा है। इस पानी का 97.3 प्रतिशत भाग महानगरों में है जबकि सिर्फ 2.7 प्रतिशत भाग भूतल पर मौजूद है। युनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के कुल जल संसाधन का 97.3 प्रतिशत समुद्र्री जल के रूप में, 2.1 प्रतिशत बर्फ के रूप में तथा .6 प्रतिशत भूमिगत यानी मृदु जल के रूप में मौजूद है। इस तरह देखा जाए तो पृथ्वी पर पाए जाने वाले कुल जल का सिर्फ .6 प्रतिशत भाग ही मानव प्रयोग हेतु मृदु जल के रूप में मौजूद है।
माना ये जा रहा है कि अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा। हो सकता है आपको यह बात कोई अतिशयोक्ति लगे। लेकिन इतना स्पष्ट है कि पानी की कमी अब वैश्विक समस्या बनती जा रही है। आज विश्व की लगभग सात अरब जनसंख्या में से सवा अरब से भी अधिक लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिल रहा है। संयुक्त राष्ट संघ ने भारत को पानी की गुणवत्ता और उपलब्धता के मानकों के आधार पर 120वां स्थान दिया है कि भारत के 38 प्रतिशत शहरों और 82 प्रतिशत गांवों में शुद्ध पानी की कोई व्यवस्था नहीं है।
आमिर खान कहते हैं कि रोज अपनी दैनिक जरूरत में से 15 प्रतिशत पानी बचाईए। मुझे नहीं पता वो ऐसा करते हैं या नहीं लेकिन देश का ये 15 प्रतिशत पानी तो फिल्म इंडस्ट्री में फिल्मों की शूटिंग में बरबाद हो जाता है जो बेवजह, बेजरूरत ही होता है। इमरान हाशमी और सोहा अली खान अभिनीत एक फिल्म आई थी ‘तुम मिले’, जिसमे तकरीबन दो लाख लीटर से ज्यादा पानी शूटिंग में बरबाद किया गया था, जिस पर मीडिया ने एक बहस भी चलाई थी। 15 से 20 प्रतिशत पानी तो भारत में लापरवाहियों के चलते बूंद बूंद गिरते टोटी से बरबाद हो जाता है। हमें सलाम करना चाहिए उस लेखक आबिद सुरती को जिन्होने अपनी लेखकीय धर्म से इतर मंुबई के गली मुहल्ले में बूंद बूंद कर गिरते टोटियों को खुद ठीक करने लिए चल पड़े। भारत के हर नागरिक से ऐसे ही एक सार्थक कदम की जरूरत है। मगर सवाल ये है कि वहां ये कैसे संभव होगा जहां घर की टोटी से टपकते बूंदों के लिए दोष भी सरकार को दिया जाता है। कागज, प्लास्टिक, कूड़ा करकट हम नालियों में फेंकते रहते हैं, और जब बरसात मे पानी सड़कों से होकर घरों में घुसने लगता है, तब हम लोग पानी पी पी कर सरकार को कोसने लगते हैं। यही कूड़ा कचरा आज नालियों और गटरों से होकर हमारी नदियों को मैला कर रहा है जिसके परिणाम स्वरूप कुछ नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं और पानी की किल्लत दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है।
अगर हम नहीं चेते तो सचमुच ये संभव है कि अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए ही हो। इसके लिए भारत के हर नागरिक को अपना नैतिक कर्तव्य समझकर पानी बचाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए, क्योंकि परंपरागत जलश्रोतों को बचाने का दावा तो सरकार बहुत करती है लेकिन सारी घोषणाएं सिर्फ कागजों पर ही होती हैं। उचित रखरखाव की अनदेखी के कारण तालाब, झीलें, नहरें, कूएं और दूसरे जलश्रोत दिन पर दिन सूखते जा रहे हैं। इन्हें बचाने के लिए हम सबको आगे आना होगा, क्योंकि जल है तो कल है।
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