भारत ही नहीं दुनिया के सभी मुल्कों में जो त्यौहार मनाये जाते हैं, (राष्ट्रीय् त्योहारों को छोडकर) वे किसी न किसी रूप में धर्म आधारित ही होते हैं. इन त्यौहारों से सामाजिक कम और धार्मिक सरोकार ज्यादा जुडे होते हैं. लेकिन हां, बदलते समय् और देशकाल के अनुसार कुछ लोगों ने इन त्यौहारों को सामाजिक सरोकारों से जोडकर सामाजिक सौहार्द को बढावा देने के नजरिये से देखा. फिर धीरे-धीरे ऐसे लोगों की तादाद बढती गयी और आज हमारे त्यौहार सिर्फ धार्मिक न रहकर सामाजिक हो गये हैं. यही कारण है कि आज भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म विशेष त्योहारों को भारतीय् त्यौहार का दर्जा दिया जाने लगा है. ईद, होली, दिवाली, लोहडी, क्रिसमस आदि जैसे त्यौहार धार्मिक त्यौहार न होकर विशुद्ध भारतीय् संस्कृति और परंपरा में रचे-बसे पूर्ण रूप से भारतीय् त्यौहार हैं.
मुसलमानों का त्यौहार ईद मुहब्बत का त्यौहार है. रमजान के 29 या 30 रोजों के बाद खुदा की तरफ से रोजेदारों को दिया गया एक नायाब तोहफा है. ईद का अर्थ है खुशी यानि एक महीने तक रोजा रखने के बाद मिलने वाली एक ऐसी खुशी कि अब तुम अपने सामान्य् दिनों में लौट आये हो, इसलिए खुशियां मनाओ. यह त्यौहार पैगामे मुहब्बत को और बुलंद करता है. यह त्यौहार अल्लाह की इबादत और इंसान की ख़ुशी का एक ऐसा संगम है जहां एक दूसरे के कट्टर दुश्मन भी एक दूसरे से गले मिलकर उनको बधाइयां देते हैं. मिलने-मिलाने और सदियों की दुश्मनी मिटाने की कवायद् करता यह त्यौहार धर्मों के बीच की दीवार को भी खत्म करने का काम करता है. क्योंकि ईद के दिन अपने मुसलमान भाइयों को बधाइयां देना और दावत पे बुलाना तो अच्छा है, लेकिन इस दिन गैर-मुसलमान भाइयों को बधाइयां देना और दावत पर बुलाना बहुत ही अच्छा है. य्ही इसलाम का दस्तूर है और इंसानियत का तकाजा है. हमारी खुशी तभी हमारी खुशी होगी जब इसमें दूसरे लोग भी शामिल हों. अब चाहे वे किसी भी धर्म-जाति के हो सकते हैं. आज हमारे देश की जो हालत है, इसके मद्देनजर य्ह कहा जा सकता है कि इस तरह के त्यौहारों की उपयोगिता सिद्ध होनी चाहिए.
ईद की सबसे खास बात यह है कि ईद की नमाज के लिए जाने से पहले हर एक मुसलमान को गरीबों, फकीरों, जरूरतमंदों के लिए फितरा (दान) निकालना जरूरी होता है. एक आदमी पर यह फितरा पौने दो किलो गेहूं या मौजूदा वक्त में इसकी कीमत के बराबर पैसा होता है. कोई आदमी सामान्य लोगों से ज्यादा मालदार है और अगर वह चाहे तो इससे ज्यादा भी अपने आसपास के जरूरतमंदों को दे सकता है. य्ही ईद का संदेश है. य्ह एक ऐसा तरीका है जिससे समाज में बराबरी का माहौल पैदा होता है. अमीर को गरीब के बारे में फिक्र करने की थोडी सी ही सही, लेकिन मोहलत मिल जाती है. इंसानियत का तकाजा भी य्ही है कि अमीर-गरीब की खाई को पाटा जाना चाहिए. ज्यादा से ज्यादा कोशिश होनी चाहिए कि हर इंसान एक दूसरे के लिए राहत का जरिया बनें. ऐसा होना धर्मनिरपेक्षता का मजबूत होना है. ऐसा होना सांप्रदायिक सद्भाव का मजबूत होना है. ऐसा होना अखंडता का ताकतवर बनना है. ऐसा होना इंसानियत की उस परंपरा का निर्वाह करना है जहां आकर सभी धर्म और इंसान एक हो जाते हैं. इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि ईद के दिन अमीर-गरीब सब एक साथ चाहे जितनी भी खुशियां मना लें, वह उनके लिए कम ही होगा.
हिंदुस्तान में कई ऐसे त्यौहार हैं जिसमें हुल्लडबाजी, खेल-तमाशे, शराबनोशी, पंगा-पटाखा आदि के जरिये अपनी खुशी का इजहार किया जाता है. हमारे सभ्य समाज के लिए ये सारी विसंगतियां हैं. इसलिए मेरा मानना है कि त्योहारों में इस तरह की चीजें अगर शामिल न हों तो बेहतर होगा. हमें लोगों की दिली खुशियों का ख्याल करना चाहिए, न कि हुल्लडबाजी पैदा करने वाले कुछ लोगों की. इसके नुकसान क्या हैं, मिसाल देना जरूरी नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि इससे त्योहारों की आत्मा पर चोट लगती है और हम एक ऐसी परंपरा कायम कर लेते हैं जिसे हमार समाज बिल्कुल भी पसंद नहीं करता. इसलिए ऐसी चीजों से दूर रहते हुए ईद की खुशियां मनायी जाये तो मैं समझता हूं कि इससे न सिर्फ हम अपनी परंपरा और संस्कृति को संजोने में कामयाब हो जाएंगे, बल्कि भारतीयता की मिसाल को हमेशा के लिए बरकरार रख पाएंगे. इसी उम्मीद व ऐतबार के साथ सबको ईद की ढेर सारी शुभकामनाएं.
मुसलमानों का त्यौहार ईद मुहब्बत का त्यौहार है. रमजान के 29 या 30 रोजों के बाद खुदा की तरफ से रोजेदारों को दिया गया एक नायाब तोहफा है. ईद का अर्थ है खुशी यानि एक महीने तक रोजा रखने के बाद मिलने वाली एक ऐसी खुशी कि अब तुम अपने सामान्य् दिनों में लौट आये हो, इसलिए खुशियां मनाओ. यह त्यौहार पैगामे मुहब्बत को और बुलंद करता है. यह त्यौहार अल्लाह की इबादत और इंसान की ख़ुशी का एक ऐसा संगम है जहां एक दूसरे के कट्टर दुश्मन भी एक दूसरे से गले मिलकर उनको बधाइयां देते हैं. मिलने-मिलाने और सदियों की दुश्मनी मिटाने की कवायद् करता यह त्यौहार धर्मों के बीच की दीवार को भी खत्म करने का काम करता है. क्योंकि ईद के दिन अपने मुसलमान भाइयों को बधाइयां देना और दावत पे बुलाना तो अच्छा है, लेकिन इस दिन गैर-मुसलमान भाइयों को बधाइयां देना और दावत पर बुलाना बहुत ही अच्छा है. य्ही इसलाम का दस्तूर है और इंसानियत का तकाजा है. हमारी खुशी तभी हमारी खुशी होगी जब इसमें दूसरे लोग भी शामिल हों. अब चाहे वे किसी भी धर्म-जाति के हो सकते हैं. आज हमारे देश की जो हालत है, इसके मद्देनजर य्ह कहा जा सकता है कि इस तरह के त्यौहारों की उपयोगिता सिद्ध होनी चाहिए.
ईद की सबसे खास बात यह है कि ईद की नमाज के लिए जाने से पहले हर एक मुसलमान को गरीबों, फकीरों, जरूरतमंदों के लिए फितरा (दान) निकालना जरूरी होता है. एक आदमी पर यह फितरा पौने दो किलो गेहूं या मौजूदा वक्त में इसकी कीमत के बराबर पैसा होता है. कोई आदमी सामान्य लोगों से ज्यादा मालदार है और अगर वह चाहे तो इससे ज्यादा भी अपने आसपास के जरूरतमंदों को दे सकता है. य्ही ईद का संदेश है. य्ह एक ऐसा तरीका है जिससे समाज में बराबरी का माहौल पैदा होता है. अमीर को गरीब के बारे में फिक्र करने की थोडी सी ही सही, लेकिन मोहलत मिल जाती है. इंसानियत का तकाजा भी य्ही है कि अमीर-गरीब की खाई को पाटा जाना चाहिए. ज्यादा से ज्यादा कोशिश होनी चाहिए कि हर इंसान एक दूसरे के लिए राहत का जरिया बनें. ऐसा होना धर्मनिरपेक्षता का मजबूत होना है. ऐसा होना सांप्रदायिक सद्भाव का मजबूत होना है. ऐसा होना अखंडता का ताकतवर बनना है. ऐसा होना इंसानियत की उस परंपरा का निर्वाह करना है जहां आकर सभी धर्म और इंसान एक हो जाते हैं. इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि ईद के दिन अमीर-गरीब सब एक साथ चाहे जितनी भी खुशियां मना लें, वह उनके लिए कम ही होगा.
हिंदुस्तान में कई ऐसे त्यौहार हैं जिसमें हुल्लडबाजी, खेल-तमाशे, शराबनोशी, पंगा-पटाखा आदि के जरिये अपनी खुशी का इजहार किया जाता है. हमारे सभ्य समाज के लिए ये सारी विसंगतियां हैं. इसलिए मेरा मानना है कि त्योहारों में इस तरह की चीजें अगर शामिल न हों तो बेहतर होगा. हमें लोगों की दिली खुशियों का ख्याल करना चाहिए, न कि हुल्लडबाजी पैदा करने वाले कुछ लोगों की. इसके नुकसान क्या हैं, मिसाल देना जरूरी नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि इससे त्योहारों की आत्मा पर चोट लगती है और हम एक ऐसी परंपरा कायम कर लेते हैं जिसे हमार समाज बिल्कुल भी पसंद नहीं करता. इसलिए ऐसी चीजों से दूर रहते हुए ईद की खुशियां मनायी जाये तो मैं समझता हूं कि इससे न सिर्फ हम अपनी परंपरा और संस्कृति को संजोने में कामयाब हो जाएंगे, बल्कि भारतीयता की मिसाल को हमेशा के लिए बरकरार रख पाएंगे. इसी उम्मीद व ऐतबार के साथ सबको ईद की ढेर सारी शुभकामनाएं.