Tuesday, August 9, 2011

गुलदान


मेरे मेज पे रखा गुलदान
उदास रहता था कल तक
मेरे कमरे में दाखिल होते ही
उसमें लगे फूल
मुझे देखकर 
छुप जाते थे पत्तियों में कहीं
उसकी शाखें
ऐसे सिकोड़ लेती थीं खुद को
मानों मैं उन्हें काट खा जाता
पानी बदलते वक्त 
फूल, पत्तियां और शाखें
सब ऐसे घूरते थे नफरत से मुझे
जैसे सदियों की कोई दुश्मनी हो मुझसे


मगर अब खुश हैं सब
मुस्कुराने लगे हैं सारे फूल,
शाखें बेकरार हैं 
मुझको बाहों में भरने के लिए,
पत्तियां बल खाकर
बोसा उछालती हैं मेरी तरफ,
और गुलदान
अपनी आंखों में आंसू लिए
शुक्रिया कहता है मुझे,
पता है क्यूं?


आज सुबह कहा था मैंने
कि अब इस गुलदान को 
तुम्हारे पास भेजने वाला हूँ....

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