Thursday, December 8, 2011

शब की शिफत

शब है तो फसाना-ए-आरजू है
शब है तो हंगामा चार-सू है
          शब है तो उजालों की आजमाइश है
          शब है तो कहकशों की पैमाइश है
शब मुस्कुराये तो चांद तबोताब हो
शब लहराये तो समंदर फैजयाब हो
          शब है तो तारों की रानाई है
          शब है तो आलम-ए-तनहाई है
शब है तो सुबह-ए-इंतजार है
शब है तो बादे-नौ-बहार है
          शब सोये तो पांवों से किरन फूटे
          शब जागे तो चांदनी चमक लूटे
शब हंसे तो गुलों में मसर्रत मचले
शब रोये तो पत्तों पे मोती फिसले
          शब चले तो तारीकी फजा महके
          शब रुके तो महफिल-ए-घटा महके
शब बोले तो फूलों के लब खुल जाये
शब चुप रहे तो नग्मगी मचल जाये
          शब है तो गुलशन-ए-तारीक है
          शब है तो जश्न की तस्दीक है



1 comment:

  1. खुबसूरत ग़ज़ल , मुबारक हो ......
    (कृपया वर्ड वैरिफिकेसन हटा दीजिये)

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