Reshma Ji |
अपनी
मखमली आवाज के लिए पूरी दुनिया में मशहूर पाकिस्तानी गायिका रेशमा अब हमारे बीच नहीं रहीं। रेशमा
राजस्थान के चुरू के लोहा गांव
में 1947 में पैदा हुईं थीं,
लेकिन
उनका गायन कभी सरहदों का मोहताज नहीं रहा। रेशमा
ने बॉलीवुड में जब ‘लंबी जुदाई’
गाना गाया तो यह गाना लोगों की जुबान पर चढ़ गया। संगीत
के कद्रदानों के लिए इस साल
यह दूसरा झटका है। पहले
शहंशाह-गजल
मेहंदी हसन विदा हुए और अब
रेशमा ने भी दुनिया को अलविदा
कह दिया। जब रेशमा जी गाती थीं तो थार मरुस्थल का ज़र्रा-ज़र्रा कुंदन सा चमकने लगता था। पाकिस्तान के लाहौर में 3 नवंबर, 2013 को उनकी वफात पर अफसोस जाहिर करते हुए प्रभात खबर के लिए मशहूर शास्त्रीय गायिका शुभा मुद्गल ने मुझसे बात की।
Shubha Mudgal |
बड़ी लंबी जुदाई दे गयीं रेशमा जी
सबसे पहले तो रेशमा जी को दिल से खिराज-ए-अकीदत! रेशमा जी का इस दुनिया से विदा लेना सिर्फ हम कलाकारों के लिए ही तकलीफदेह नहीं है, बल्कि सरहदों से बंटे मुल्कों में हर उस शख्स के लिए तकलीफदेह है, जो अलगाव के दर्द को समझते हैं और इस दर्द को कम करने के लिए रेशमा जी के नग्मों को गुनगुनाते हैं। हम जैसे क्लासिकल और सूफियाना संगीत के आलम में खुद को डुबो देनेवालों के लिए तो यह बहुत ही अफसोस की बात है कि अब वह रेशमी आवाज फिर से कोई नग्मा नहीं छेड़ेगी। उन्होंने यह साबित किया था कि फनकार किसी मुल्क का नहीं होता, बल्कि वह पूरी कायनात का होता है। कलाकारों के लिए कोई सरहद नहीं हुआ करती और रेशमा जैसी सरबलंद आवाज की गायिका के लिए तो और भी नहीं।
इस दुनिया में जितने भी कलाकार-फनकार हैं, उनका अपना एक खास लहजा और अंदाज होता है, जिससे उनकी पहचान बनती है। हालांकि यह कोई जरूरी नहीं कि सभी का अंदाज इतना पुरअसर हो कि दुनियाभर के लोगों के दिलों में घर कर जाये। लेकिन रेशमा जी की आवाज में वह तासीर थी, वह कशिश थी, एक खनक थी, जिसकी बदौलत वे सुनने वाले हर खास-ओ-आम के दिल में सीधे उतर जाती थीं। सबसे बड़ी खासियत यह है कि उनकी आवाज में कोई बनावटीपन नहीं था। लफ्जों की अदायगी का एक खालिस फोक (गंवई) अंदाज था. जब भी उनका नग्मा, ‘लंबी जुदाई...’ कहीं बजता है, तो उसे सुनते हुए सचमुच हमारे दिल के गोशे तक किसी से गहरे जुदाई का, महबूब से बिछड़ने का, रुसवा होने का, किसी अपने से बहुत दूर चले जाने का एक दर्द भरा एहसास होने लगता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनके गले में एक रूहानी तासीर थी, जिसे कहीं से सीखा या बनाया नहीं जा सकता।
रेशमा जी की फनकारी ईश्वर की अमानत है, गुरुओं की दुआएं हैं। कोई शख्स किसी चीज को सीखने के लिए लाख कोशिश कर ले, लेकिन जब तक उसके अंदर वह ‘गॉड गिफ्टेड’ चीज न हो, तो उसकी सारी कोशिश बेकार हो सकती है। उनका गाया नग्मा ‘अंखियां नू रहने दे अंखियों दे कोल कोल...’ को आप सुनिए, ऐसा लगता है कि कितनी निडर और अपनी ओर बरबस ही खींच लेने वाली आवाज नजर आती है। रेशमा जी की आवाज की वह तासीर ही थी, जिसके लिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने उनको ‘सितारा-ए-इम्तियाज’ और ‘लेजेंड्स आफ पाकिस्तान’ के लकब से नवाजा। सचमुच एक लंबी जुदाई दे गयी हैं रेशमा जी। ऊपर वाला उनकी रूह को बेशुमार इज्जत से नवाजे।
Bahut Achhi Fankar Thi Reshma Ji. Unko Mera Bahut Bhaut Salaam
ReplyDeleteप्यार की कहानियाँ