Sunday, April 3, 2011

उस घर से

इस नये घर में 

वैसे तो सब कुछ है
जब चाहूं तब आने-जाने की आजादी,
सोने-खाने की आजादी, 
बिला-वक्त नाचने गाने की आजादी
और सबसे बढ़कर 
खुलकर जीने की आजादी

मगर ऐसी आजादी 
बेमाने लगती है मुझे
क्योंकि इसमें
सुनीता की डांट नहीं है कहीं
जो कहती थी-
छीः कितने गंदे हो आप!
क्यों सिगरेट पीते हो इतना!

मैम का मासूम गुस्सा नहीं है इसमें
जो कहती थीं-
बहुत गंदा नशा है सिगरेट!
और मेरा जवाब होता था-
सबसे बुरा नशा तो इश्क है मैम
जो अब तक मुझे हुआ नहीं.
और वो हंसकर कहती थीं-
पागल हो गये हैं आप!

सिम्मी, गोलू और निक्कू की 
मासूम हरकतें नहीं हैं इसमे
जिनके साथ खेलते हुए
मैं भी बच्चा बन जाता था,
लौट आता था मेरा बचपन,
उम्र बढ़ जाती थी मेरी...

ऐसा लगता है
सिर्फ अपना जिस्म लेकर
लौट आया हूं वहां से,
मेरा दिल, मेरी रूह
वहीं कहीं छूट गये हैं मुझसे.

अगर ये दोनो मिल जायें आपको
तो प्लीज!!!
कम्बख्तों का कान पकड़ कर 
दो थप्पड़ दीजिएगा
और भेज दीजिएगा मेरे पास.

2 comments:

  1. aapki kawita ki pahle ki post bhi maine padhi thi sir ye bata dein ki ishq hai kya cheej jo kabhi aapko pehle isi sigrate ki wajah se hoti hai phir aap hi kahte hain nahi hui kher jo bhi ho bahut hi sundar bhaw ................. purane dino ki yaad taza ho gayiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii........... thanks for ur post.....................

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  2. किसी की साये से हमने जो मोहब्बत कर ली
    तुम्ही कहो, गुनाह हो गया कहाँ मुझसे.
    ठीक है....अच्छा है.... कर्म भी और कविता भी ... अति सुन्दर

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