एक आदमी खुद को
सर्वोच्च ज्ञानी मानता है
कभी किसी से नहीं मिलता
वह कविता करता है
अपनी कविता में
बात करता है जनसरोकारों की
बजाता है क्रांति का बिगुल
एक दूसरा आदमी है
जो सबको साथ लेकर चलता है
उच्चता का घमंड नहीं करता
बातें करने के बजाय
निभाता है जन के प्रति सरोकारों को
लेकिन हां
वह कविता नहीं लिखता
एक तीसरा आदमी भी है
जो न कविता लिखता है
और न ही किसी
जनसरोकार की बात करता है
वह कविता और जनसरोकार दोनों से
जैसे चाहता है, खेलता है
जनता पूछ रही है
यह तीसरा आदमी कौन है
देश का मीडिया मौन है
सर्वोच्च ज्ञानी मानता है
कभी किसी से नहीं मिलता
वह कविता करता है
अपनी कविता में
बात करता है जनसरोकारों की
बजाता है क्रांति का बिगुल
एक दूसरा आदमी है
जो सबको साथ लेकर चलता है
उच्चता का घमंड नहीं करता
बातें करने के बजाय
निभाता है जन के प्रति सरोकारों को
लेकिन हां
वह कविता नहीं लिखता
एक तीसरा आदमी भी है
जो न कविता लिखता है
और न ही किसी
जनसरोकार की बात करता है
वह कविता और जनसरोकार दोनों से
जैसे चाहता है, खेलता है
जनता पूछ रही है
यह तीसरा आदमी कौन है
देश का मीडिया मौन है
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