अभी तो रौनक़े-बाज़ार मुर्गे-सहर होना था
अभी तो धूप की तासीर का आगाज़ होना था
अभी तो रुख़ हवा का और बेअंदाज़ होना था
अभी तो शाम के सारे मनाजिर रक्स करने थे
अभी तो माहो-अख़्तर के दिलों में रंग भरने थे
अभी तो बुलबुलों के परों का परवाज़ बाक़ी था
अभी तो शहरे-मौसिक़ी का हसीं साज़ बाक़ी था
अभी तो वक्त के सारे तकाज़े आने थे बाक़ी
अभी तो लम्हों-लम्हों के जनाज़े आने थे बाक़ी
के तुमने ख़ुश हवा में ज़हर बमों का मिला डाला
ये गलियों में मिला डाला,वो कूचों में मिला डाला
लगाकर मौत का सामान ख़ुद परवाज़ कर बैठे
बहाकर ख़ून इंसां का ख़ुदी पर नाज़ कर बैठै
न तुमने ये कभी सोचा कि ख़ूं इंसान का होगा
न तो हिंदू का ख़ूं होगा न मुसलमान का होगा
बिछाकर मज़हबी शतरंज चाल दहशत की चलते हो
जेहादी नाम से इंसानियत का सर कुचलते हो
मासूमियत का तुम जो क़त्लेआम करते हो
ख़ुदा वाले ख़ुदा की ज़ात को बदनाम करते हो
ख़ून मज़लूम का हो ये मेरा ईमां नहीं कहता
करो तुम दीन को रुसवा कोई कुर्आँ नहीं कहता
इस जेहाद से रब की मुहब्बत मिल नहीं सकती
बहाकर ख़ून इंसां का वो जन्नत मिल नहीं सकती
बहाकर ख़ून इंसां का वो जन्नत मिल नहीं सकती. nice
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