मानसून की आमद के साथ
कल रात
अचानक हुई तेज बारिश में
निकला था मैं छप्पा करने
गुजरे दो मौसमों की तपिश में
झुलस चुके पीले पत्ते
ऊंघ रहे थे जो दरख्तों पर
गिरने से पहले
लम्हे भर की राहत पाकर
खिल उठे
कोई जिंदगी मिल गयी हो जैसे
नुक्कड़ के मंदिर में बैठा देवता
लाल हो रहा था गुस्से में,
शाम की आरती में लगे
उसके माथे का टीका
बौछार के नेजे से कटकर
टपक रहा था उसके चेहरे से
खिड़कियाँ खोले वो कंवारियां
हाथ बढ़ाकर खींच लेती थीं जब
पास से गिरती हुई
बूंदों की आंखों से
मोती टपक पड़ते थे
पिछली रात की वो बारिश
सिर्फ बारिश तो नहीं थी
बादलों का दर्द भी था उसमें...शायद
good one sir jeeeeeeeeeeeeeeeee
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