Sunday, July 24, 2011

पिछली रात की बारिश


मानसून की आमद के साथ
कल रात
अचानक हुई तेज बारिश में
निकला था मैं छप्पा करने

गुजरे दो मौसमों की तपिश में
झुलस चुके पीले पत्ते
ऊंघ रहे थे जो दरख्तों पर
गिरने से पहले
लम्हे भर की राहत पाकर  
खिल उठे
कोई जिंदगी मिल गयी हो जैसे

नुक्कड़ के मंदिर में बैठा देवता
लाल हो रहा था गुस्से में,
शाम की आरती में लगे
उसके माथे का टीका
बौछार के नेजे से कटकर
टपक रहा था उसके चेहरे से

खिड़कियाँ खोले वो कंवारियां
हाथ बढ़ाकर खींच लेती थीं जब
पास से गिरती हुई
बूंदों की आंखों से 
मोती टपक पड़ते थे

पिछली रात की वो बारिश
सिर्फ बारिश तो नहीं थी
बादलों का दर्द भी था उसमें...शायद

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