Wednesday, September 28, 2011

पतंगे का वजूद


अजीब हरकत है
समंदर के लहरों की
हौले से पास आयें
तो पैरों में कोई राग उड़ेल कर
नग्मगी करती हैं मीठी सी
और अगर कभी
अपनी औकात पर आ जायें
तो इंसानी वजूद को भी
रेत का जर्रा समझ लेती हैं गोया

मगर उनके वजूद को भी
बिखरते देखा है मैंने
जब कोई अदना सा पतंगा
तेज लहरों के उपर बैठकर
रक्स करता है पलभर के लिए
उनके शोर को
कैद कर लेता है अपने पंखों में

रेत पर इंसानी कदमों के निशान
मिटते देर नहीं लगती जरा भी
मगर तेज लहरों की बूंदों पर
पतंगों के कदमों के निशान
ऐसे अक्सनशीं हो जाते हैं जैसे
अजल से ये चांद तारे
अक्सनशीं हैं आसमां पर...

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