Tuesday, November 22, 2011

एक मासूम ख्वाहिश


एक गांव के 
बिल्कुल सीधे-सादे लड़के की
एक मासूम सी ख्वाहिश-

काश!
मेरे पास एक सरकारी नौकरी होती
मेरी शादी हो जाती और मैं
एक मासूम मगर जिद्दी बीवी का
एक भोला सा पति बन जाता।

मेरे पास एक लमरेटा स्कूटर होता
और छुट्टियों के दिन जब
मेरी बीवी घुमाने ले चलने को कहती
तो उस स्कूटर पर उसे बिठाकर
बाजार की तरफ चल देता
बीच रास्ते में रेड लाइट पर
मेरा स्कूटर चुपके से बंद हो जाता
दो-चार किक और घुर्र-घुर्र के बाद
स्कूटर तो नहीं स्टार्ट होता मगर
मेरी बीवी का मासूम गुस्सा स्टार्ट हो जाता
मैं किक पे किक मारता जाता
और वो गाली पे गाली दिये जाती।

जब वो गुस्से में मुझे कोसती हुई 
बड़ी मासूमियत से कहती-
सरकारी नौकर हो मगर अभी भी 
तुम्हारे सपने सरकारी नहीं हुए
कब से कह रही हूं कि अम्पाला न सही
आल्टो, आइटेन या नैनो ही ले लो
और मैं उसकी गुस्सैल मासूमियत पर 
हौले-हौले मुस्कुराता जाता। 

किसी दिन बाजार से सब्जी लाते ही
उसका गुस्सा फिर फूट पड़ता
वो डांटती-
सब्जी भी खरीदना नहीं आया आपको
कुछ भी उठा लाते हैं
ऐसे कि जैसे बिना पैसे के लाते हैं।

और मैं डरा-डरा सा उससे कहता-
एक कप चाय बना दीजिए
कल से आप ही सब्जी ले आइयेगा।

काश!
मेरी भी शादी हो जाती
और मैं किसी का पति बनता।
काश! 
रोज उसकी एक मासूम जिद
मेरी खुशी का कारण बनता।

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति,बधाई.

    ReplyDelete