Tuesday, January 11, 2011

इश्क का कैंसर

याद है एक दिन 


मेरे मुंह से सिगरेट खींचकर 
फेंक दिया था तुमने गुस्से में 
ये कहते हुए कि
छि:! कितने गंदे हो आप 
और कैंसर का हवाला देकर 
कभी न पीने का 
एक मासूम सा 
मशवरा भी दिया था तुमने 

तेरे उस मशवरे ने 
बचा लिया मुझको कैंसर से 
अब जो तेरे इश्क का कैंसर 
पल पल खाए जा रहा है मुझे 
और तुम खामोश हो ऐसे 
कुछ नहीं जानती जैसे........

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