Saturday, January 21, 2012

शब और शबनम


अजीब शब है
हाथों में चांद का कटोरा लिए
तारों के सिक्के मांगती-फिरती है....

अजीब शब है
मेरी आंखों को
नींद की आगोश में सुलाकर
ख्वाब बिखेर देती हैं वहां....

अजीब शब है
जैसे समंदर की सतह पर भाप
अभी तो नहीं मगर
बरसेगी जरूर एक दिन
अजीब शब है....है न.....


अलसुबह लान में टहलते हुए
शबनम की बूंदों ने
ऐसे हौले से छुआ मुझको
जैसे कि तुमने छुआ हो...

मद्धम हवा के झोंके से फिसलकर
गुलाब की पंखुरी से गिरते हुए 
उस शबनम की बूंद को
अपनी उंगलियों पर ऐसे संभाला मैंने
जैसे लहराकर गिरते हुए 
तुमको संभाल लिया हो मैंने...


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