Saturday, January 8, 2011

कमबख्त वक़्त

बहुत दिन हुए 

उस गली से गुज़रे

अब तो शायद वो भी

मेरी राह नहीं देखती होगी

कहाँ ठहरता है 

कोई इतने दिनों तक

कहते हैं प्यार के लिए


वक़्त देना पड़ता है

मगर पेट ने 


खरीद लिया है वक़्त को 

अब मेरे पास जो वक्त है

वो पेट के लिए है

और ये वक्त बहुत ज़ालिम है

दिन भर 


काम कराता रहता है मुझसे

कमबख्त! वक़्त 


उसको याद भी नहीं करने देता

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